मैं तो सज गई अपने सजना के लिए. . . . . . . .

मैं तो सज गई अपने सजना के लिए. . . . . . . .

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करवाचौथ के संबंध में शुक्रवार को पंजाब के सभी शहर के बाजारों में काफी रौनक रही। सजने संवरने के लिए महिलाओं का बाजार की ओर रुख रहा। मेंहदी लगाने वालों के पास महिलाओं की काफी भीड़ जमा रही। आम दिनों में जहां मेंहदी लगाने वालों के द्वारा 200 से 300 रुपए लिए जाते हैं वहीं इन दिनों महिलाओं से मेंहदी लगाने के 500-700 रुपए वसूले जा रहे हैं। बाजार में उमड़ी भीड़ महिलाओं के दिलों में इस त्यौहार के उत्साह को साफ तौर पर ब्यान कर रही थी। वहीं दुकानदारों ने भी इस दिन की काफी तैयारी कर रखी थी तांकि ग्राहकों को दुकान की तरफ आकर्षित कर कमाई की जा सके। दुकानदारों ने विभिन्न प्रकार के मेकअप के सामान को दुकानों के बाहर सजा कर रखा था। वहीं करवा चौथ के संबंध में फगवाड़ा के मशूहर सैलून लोरेल स्टूडियो सैवन व मेराकी सैलून में भी महिलायों का तांता सुबह से ही लगना शुरू हो गया था। हर कोई महिला अपने पति के लिए खास तौर पर सजना चाहती थी, वहीं फगवाड़ा के इन दोनों सैलूनों में महिलायों के लिए खास आफर भी लगाए गए थे तांकि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इसका लाभ उठा सके।

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क्या है वर्त की पारंपकि विधि

प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्नान करके पति, पुत्र, पौत्र, पत्नी तथा सुख-सौभाग्य की कामना की इच्छा का संकल्प लेकर निर्जल व्रत रखें। शिव, पार्वती, गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र का पूजन करें। बाजार में मिलने वाला करवा चौथ का चित्र या कैलेंडर पूजा स्थान पर लगा लें। चंद्रोदय पर अर्घ्य दें। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल भरें। सुहाग की सामग्री, कंघी, सिंदूर, चूडिय़ां, रिबन, रुपए आदि रख कर दान करें। सास के चरण छूकर आशीर्वाद लें और फल-फूल, मेवा, मिष्ठान, बायना, सुहाग सामग्री, 14 पूरियां, खीर आदि उन्हें भेंट करें। विवाह के प्रथम वर्ष तो यह परंपरा सास के लिए अवश्य निभाई जाती है। इससे सास-बहू के रिश्ते और मजबूत होते हैं। करवाचौथ के दिन सुबह सुहागिनें मांग में सिन्दूर, माथे पर बिंदिया व हाथों में रंग-बिरंगी चूडिय़ां व आभूषणों के साथ-साथ तड़क-भड़क वाले रंग-रंगीले परिधानों को धारण करती हैं। वे आज के दिन यह व्रत भी लेती हैं कि वे अपने पति परमेश्वर के प्रति पूरी निष्ठा, त्याग, मन, वचन से उसको अपना सर्वस्व अर्पण करेंगी। इस व्रत की विशेषता यह है कि सजी-धजी औरतें शाम को चन्द्रमा देख उसे अर्घ्य देकर व पूजा-अर्चना के बाद ही अन्न ग्रहण करती हैं। वे इस दिन एक बूंद भी पानी नहीं पीतीं। करवे की संध्या बेला में महिलाओं के सौंदर्य से सारा वातावरण महकने लगता है, वे बड़ी बेसब्री के साथ चन्द्रोदय का इतंजार करती हैं। इससे पहले वे विधि-विधान के अनुसार ‘करवाचौथ’ पर्व से जुड़ी अनेकानेक कथाओं में से किसी एक कथा को सुनती हैं तथा एक चौकी पर पानी का लोटा, बयाने के लिए करवा में गेहूं या चावल, पैसा, रोली, गुड़, इत्यादि रखकर लोटे व करवे पर संतिया बनाकर 13-13-टीकियां लगाती हैं व हाथ में 13 दाने लेकर कथा सुनती हैं। कथा सुनने के पश्चात बयान निकाल कर सास के चरण छूकर उन्हें देती हैं व गेहूं तथा पैसा कथा सुनाने वाली कन्या को देती हैं। इसके बाद पके अन्न, अक्षत व दूध भरकर 10 करवे एवं प्रसाद ब्राह्मणों में बांट देना चाहिए। जैसे ही चांद दिखाई देता है, तो पत्नियां छलनी में चांद को देख उसे अर्घ्य देकर पूजा करने के बाद अपने पति के पांव छूती हैं तथा चन्द्रमा को चढ़ाए गए प्रसाद को पूरे परिवार में बांट देती हैं। ‘करवाचौथ’ व्रत से पति-पत्नी के मध्य जहां विश्वास, प्रेम व श्रद्धा की डोर मजबूत होती है, वहीं समर्पण की भावना को भी बल मिलता है। इस दिन आपसी मनमुटाव दूर होता है व एक नए संकल्प के साथ जीने का प्रण स्त्री-पुरुष एक साथ लेते हैं।